दीवाली पर निबंध
मित्रों,हम सभी भली-भांति जानते हैं कि त्यौहार मानव-जीवन का एक अभिन्न अंग हैं ,तभी तो विश्व का कोई ऐसा देश हीं जहाँ कोई त्यौहार न मनाया जाता हो |हमारे देश भारत में तो त्योहारों की भरमार है और हो भी क्यों न ? त्योहार ही तो हैं जो आंतरिक एवं बाह्य दोनों तरह की शुद्धि सहज ही करवा देतें हैं, प्रेम का संदेश प्रसारित करते हैं तथा मन की शान्ति को पुनःस्थापित कर कर्मशीलता को सक्रिय किया करते हैं |यहाँ तक कि “विश्व-बन्धुत्त्व” की नींव को मजबूत करने में भी त्योहारों का योगदान अत्यंत उल्लेखनीय है |वस्तुतः,हमारे देश में कई तरह के त्यौहार मनाये जाते हैं –कुछ “धार्मिक” जैसे- मकर-संक्रान्ति, शिव-रात्रि ,होली, राम-नवमी, गुरु-पूर्णिमा, रक्षाबंधन , कृष्ण जन्माष्टमी, ईद, गणेशोत्सव, नवरात्र, दशहरा ,करवा-चौथ, छठ पूजा, दीपावली, गोवर्धन-पूजा , गुरु नानक जयंती, क्रिसमस या बड़ादिन |कुछ राष्ट्रीय-त्यौहार अर्थात् जिन्हें सम्पूर्ण राष्ट्र मिलकर मनाता है; जैसे – गणतंत्र-दिवस, स्वतन्त्रता-दिवस ,दो अक्टूबर अर्थात् महात्मा गाँधी जी एवं भारतीयों को “जय जवान जय किसान” का नारा देने वाले हमारे भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म-दिवस, डा.अम्बेडकर जयंती, सरदार पटेल जयंती और बाल-दिवस |
मित्रों, कुछ ही दिनों बाद हम भारत के
सबसे महत्त्वपूर्ण त्योहारों में से एक “दीपावली” मनाएंगे। ईश्वर की कृपा
से आप सबके लिए यह पर्व मंगलमय हो!
दीपावली पर निबंध
दीपावली मनाते समय हमारा हृदय निर्मल, मन
प्रसन्न, चित्त शांत, शरीर स्वस्थ एवं अहंकार…‘शून्य’ हो –ऐसी ही अनुनय
विनय है भगवान् श्री राम के चरण-कमलों में | इस पावन-पर्व को मनाने के पीछे
एक अत्यंत गौरवमय इतिहास है |कहते हैं कि त्रेता युग में अयोध्या के राजा;
राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र जिन्हें संसार “मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ”
के नाम से जानता है,जब पिता की वचन-पूर्ति के लिए चौदह वर्ष का वनवास पूरा
करके अपनी पत्नी सीता जी एवं अनुज लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे तो नगर
वासियों ने उनके स्वागत के लिए, अपनी खुशी प्रदर्शित करने के लिए तथा
अमावस्या की रात्रि को भी उजाले से भरने के लिए घी के दीपक जलाये थे |
इसके अतिरिक्त, वनवास के मध्य ही लंका का राजा रावण श्री राम की भार्या
सीता जी का हरण करके उन्हें लंका ले गया था और तब हनुमान, अंगद,
सुग्रीव,जामवंत एवं विशाल वानर सेना के सहयोग से समुद्र पर सेतु-निर्माण कर
,लंका पर आक्रमण करके उन्होंने रावण जैसे आततायी का वध कर धर्म की स्थापना
की थी तथा सम्पूर्ण मानव जाति को यह संदेश दिया कि
आतंक चाहे कितना भी सिर उठाने की कोशिश करे तो भी उसका अंत निश्चित है|” और “बुराई पर अच्छाई सदा भारी हुआ करती है|
इस स्मृति में हर वर्ष दशहरा मनाया जाता है जो “विजय दशमी” के नाम से भी
विख्यात है और दशहरे के लगभग बीस दिन बाद ही दीपावली आती है |
दीपावली पर निबंध
शुभ दीपावली
इसके अतिरिक्त, वनवास के मध्य ही लंका का
राजा रावण श्री राम की भार्या सीता जी का हरण करके उन्हें लंका ले गया था
और तब हनुमान, अंगद, सुग्रीव,जामवंत एवं विशाल वानर सेना के सहयोग से
समुद्र पर सेतु-निर्माण कर ,लंका पर आक्रमण करके उन्होंने रावण जैसे आततायी
का वध कर धर्म की स्थापना की थी तथा सम्पूर्ण मानव जाति को यह संदेश दिया
कि-
आतंक चाहे कितना भी सिर उठाने की कोशिश करे तो भी उसका अंत निश्चित है|” और “बुराई पर अच्छाई सदा भारी हुआ करती है|
इस स्मृति में हर वर्ष दशहरा मनाया जाता
है जो “विजय दशमी” के नाम से भी विख्यात है और दशहरे के लगभग बीस दिन बाद
ही दीपावली आती है | इस पावन इतिहास के अतिरिक्त जैन धर्म
के अनुयायिओं का मत है कि दीपावली के ही दिन महावीर स्वामी जी को निर्वाण
मिला था |सिक्ख धर्म को मनानेवाले कहते हैं कि इसी दिन उनके छठे गुरु श्री
हर गोविन्द सिंह जी को जेल से रिहा किया गया था |
दीपावली की रात में “काली पूजन” भी किया जाता है तथा इस रात को “महानिशा”
भी कहा जाता है |लगभग आधी रात के समय कई लोग किसी भी एक मन्त्र का एक अथवा
आधे घंटे तक निरंतर जाप करते हैं जिसे अत्यंत पुण्यकारी माना गया है |
दीपावली-पूजन के साथ ही व्यापारी नये बही-खाते प्रारम्भ करते हैं और अपनी
दुकानों, फैक्ट्री ,दफ़्तर आदि में भी लक्ष्मी-पूजन का आयोजन करते हैं |खूब
मिठाइयाँ बांटते हैं | एक बात अत्यंत महत्त्वपूर्ण है कि दीपावली पर एक
दीये से ही दूसरा दीया जलाया जाता है और यह संदेश स्वतः ही प्रसारित हो
जाता है कि-
जोत से जोत जलाते चलो, प्रेम की गंगा बहाते चलो|
भले ही यह त्यौहार पूरे भारत में बेहद भव्य रूप से मनाया जाता है फिर भी
गुजरात में दीपावली की छटा निराली ही होती है | दीपावली से चार दिन पहले;
एकादशी से प्रारम्भ करके, दीपावली के दो दिन बाद तक यानि कि भाई-दूज तक
दीपावली की रोशनी से हर घर ,गली,चौराहा जगमगाते रहते हैं | पकवान तो इतने
बनाये जाते हैं कि जैसे माँ अन्नपूर्णा ने अपने भंडार ही खोल दिए हों |
रंग-बिरंगी ‘रंगोली’ हर द्वार की शोभा में चार चाँद लगाती है | फूलों, आम
के अथवा अशोक वृक्ष के पत्तों से बने तोरणों से घरों के मुख्य द्वार सजाये
जाते हैं | पटाखों की भी काफी भरमार होती है | दीपावली से अगला दिन “नव
वर्ष” के रूप में मनाया जाता है ,सब एक दूसरे के घर मिलने जाते हैं
अन्ततः, मैं यही कहना हैं --हम दीपावली का परम-पावन त्यौहार खूब उत्साह से मनाकर अपनी संस्कृति को
बनाये रखने में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं लेकिन ऐसे सुंदर अवसरों पर यह
चर्चा करना अक्सर भूल जाया करते हैं कि कैसे भगवान् श्री राम ने अपने जीवन
में संघर्षों का बहादुरी से सामना किया और सत्य एवं धर्म के मार्ग पर चलने
के लिए जीवन के सब सुखों को दाँव पर लगा दिया | सच मानिये त्यौहार के
माध्यम से यदि हम आपसी वैमनस्य को छोड़कर, अपने जीवन में एक भी दिव्य गुण
को विकसित कर ; उसे निरंतर पोषित करते रहने का उत्साह बनाये रख सकें, तभी
हम सच्चे अर्थों में त्यौहार मनाते हैं |
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